Saturday 19 November 2016

फ़ासले

आजकल कुछ लिख नहीं पा रहा हूँ...

तुझसे फ़ासले बढ़ रहे हैं शायद...

"ऐ ज़िन्दगी, गले लगा ले!"

Friday 5 February 2016

नज़राना

तुम्हें देने के लिए चाँद-तारे तो नहीं मेरे पास। ...
चंद मेरी ये नज़्में हैं, चाहो तो नज़र कर दूँ ?

Wednesday 3 February 2016

ये पाया हमने ?

आज तिरंगे को फिर से फ़हराया हमने
वही सिलसिला सालों का दोहराया हमने

बिना अर्थ को जाने, आशय को पहचाने
आज पुनः उस राष्ट्रगान को गाया हमने 

राष्ट्रप्रेम की वही प्रतिज्ञा फिर से रट के
झूठे शब्दों का अम्बार लगाया हमने

भाषण भी नेता का था जाना पहचाना
बड़े ध्यान से सुना मगर, दिखाया हमने

कौन भगत और कौन महात्मा किसे पड़ी थी?
नारा 'जय जय' का जम के लगाया हमने

सीमा पर जो ख़ून बहा है उसे याद कर
कुछ पल का अफ़सोस पुनः जताया हमने

चर्चा में सब अधिकारों पर खुल कर बोले
कर्तव्यों का मुद्दा कहाँ उठाया हमने?

'छुट्टी का दिन' यही आज की विशेषता है
राष्ट्र के लिए कहाँ इसे मनाया हमने ?

राष्ट्रवंदना एक दिखावा मात्र रह गयी
इतना कुछ खोके, ये पाया हमने ?

बस यूँही